Thursday, May 21, 2009

फुलवारी/पाँच रचनाकारों की रचनायें

फुलवारी के इस अंक में प्रस्तुत है इन ग़ज़लकारों की रचनायें-

-जहीर कुरेशी की ग़ज़ल-


तिमिर की पालकी निकली अचानक।
घरों से गुल हुई बिजली अचानक।

तपस्या भंग-सी लगने लगी है,
कहाँ से आ गयी ’तितली’ अचानक।

अभी सामान तक खोला नहीं था,
यहाँ से भी हुई बदली अचानक।

समझ में आ रहा है स्वर पिता का,
विमाता कर गई चुगली अचानक।

तुम्हारी साम्प्रदायिक-सोच सुनकर,
मुझे आने लगी मितली अचानक।

ये पापी पेट भरने की सजा है,
नचनिया, बन गई तकली अचानक।

मछेरे की पकड़ से छूटते ही,
नदी में जा गिरी मछली अचानक।

पता-समीर काटेज,बी-२१,सूर्य नगर
शब्द प्रताप आश्रम के पास,
ग्वालियर-४७४०१२[म०प्र०]
मोबाइल न०-०९४२५७९०५६५


-रामकुमार 'कृषक' की ग़ज़ल-

हम हुए आजकल नीम की पत्तियाँ।
लाख हों रोग हल नीम की पत्तियाँ।

गीत गोली हुए शेर शीरीं नहीं,
कह रहे हम ग़ज़ल नीम की पत्तियाँ।

खून का घूँट हम खून वे पी रहे,
स्वाद देंगी बदल नीम की पत्तियाँ।

सुर्ख संजीवनी हों सभी के लिये,
हो रही खुद खरल नीम की पत्तियाँ।

आग की लाग हैं सूखते बाँसवन,
अब न होंगी सजल नीम की पत्तियाँ।

वक्त हैरान हिलती जड़ें बरगदी,
सब कहीं बादख़ल नीम की पत्तियाँ।

एक छल है गुलाबी फसल देश में,
दरअसल हैं असल नीम की पत्तियाँ।


पता
-सी-/५९ नागार्जुन नगर,
सादतपुर विस्तार,
दिल्ली-११००९४

-अनु जसरोटिया की ग़ज़ल-

धूप में मेरे साथ चलता था।
वो तो मेरा ही अपना साया था।

वो ज़माना भी कितना अच्छा था,
मिलना-जुलना था आना-जाना था।

यक-बयक माँ की आँख भर आई,
हाल बेटे ने उसका पूछा था।

दिल मचलता है चाँद की खातिर,
ऐसा नादां भी इसको होना था।

उसको आना था ऐसे वक्त कि जब,
कोई ग़फ़लत की नींद सोता था।

दिल है बेचैन उसके जाने पर,
बेवफाई ही उसका पेशा
था |

पता
-इन्दिरा कालोनी,
कठुआ-१८४१०१
[जम्मू और कश्मीर]

-दरवेश भारती की ग़ज़ल-

धन की लिप्सा ये रंग लायेगी।
आपसी फ़ासिले बढा़एगी।

तेरे जीवन का दम्भ टूटेगा,
ऐ ख़िज़ां जब बहार आएगी।

मुल्क में क्या बचेगा कुछ यारों,
बाड़ जब खुद ही खेत खाएगी।

इन उनींदे अनाथ बच्चों को,
लोरियाँ दे हवा सुलाएगी।

अणुबमों से सज गया संसार,
कैसे कुदरत इसे बचाएगी।

हम हैं ’दरवेश’ हमको ये दुनिया,
क्या रुलाएगी,क्या हँसाएगी।


पता-पोस्ट बाक्स न०-४५,
रोहतक -१२४००१[हरियाणा]
मोबाइल न०-०९२६८७९८९३०

-शिवकुमार ’पराग’ की ग़ज़ल-

ऐसी कविता प्यारे लिख।
जो मन को झंकारे लिख।

लौट के धरती पर आ जा,
अब ना चाँद सितारे लिख।

हवा-हवाई ही मत रह,
कुछ तो ठोस-करारे लिख।

पाला मार रहा सबको,
लिख,जलते अंगारे लिख।

दुरभिसंधियाँ फैल रहीं,
इनके वारे-न्यारे लिख।

समझौतों की रुत में भी,
खुद्दारी ललकारे लिख।

सिर पर है बाज़ार चढा़,
जो यह ज्वार उतारे लिख।

जहाँ-जहाँ अँधियारे हैं,
वहाँ-वहाँ उजियारे लिख।

हार-जीत जो हो सो हो,
लेकिन मन ना हारे लिख।

पता-म०न० /१४० एस-१०
संजय नगर[रमरेपुर],अकथा,
पहड़िया,वाराणसी[उ०प्र०]
मो०न०-९४१५६९४३६१


समकालीन ग़ज़ल

समकालीन ग़ज़ल,ग़ज़ल पर केन्द्रित एक प्रतिनिधि पत्रिका है जिसमें जून २००९ से हर माह अपने समय के सरोकारों से जुडी़ हुई रचनायें ही प्रकाशित होंगी। इसमें शामिल रचनाकारों के लिये ये जरूरी है कि वे रचनायें भेजते समय ग़ज़ल के शिल्प और छन्दानुशासन का पूरा ध्यान रखें।
सभी ग़ज़लकार मित्रों से यह आग्रह है कि वे अपनी उम्दा रचनायें ई मेल द्वारा - pbchaturvedi@in.com पर भेज सकते हैं|

नोट:-एक शायर स्तम्भ में एक ही ग़ज़लकार की कई रचनायें हर माह प्रकाशित होंगी। इसमें शामिल होने के लिये ये आवश्यक है कि ग़ज़लकार अपनी दस मौलिक रचनाओं के साथ अपना एक फ़ोटो एवं संक्षिप्त जीवन परिचय अवश्य प्रेषित करें।
फ़ुलवारी स्तम्भ में कई ग़ज़लकारों की एक-एक रचना प्रकाशित होंगी।
चुनिन्दा शेर स्तम्भ में चुने हुए कुछ ऐसे शेर प्रकाशित होंगे,जो अपने आप में पूर्ण होंगे।

विभिन्न शायरों के कुछ चुनिन्दा शेर-

१-विज्ञान व्रत -
मैं कुछ बेहतर ढूढ़ रहा हूँ।
घर में हूँ घर ढूढ़ रहा हूँ।


२-अश्वघोष-
मुझमें एक डगर ज़िन्दा है।
यानी एक सफ़र ज़िन्दा है।


३-ज्ञान प्रकाश विवेक-
किसी के तंज़ का देता न था जवाब मगर,
ग़रीब आदमी दिल में मलाल रखता था।


४-जयकृष्ण राय’तुषार’-
भँवर में घूमती कश्ती के हम ऐसे मुसाफ़िर हैं,
न हम इस पार आते हैं न हम उस पार जाते हैं।


५-बालस्वरूप राही-
सीधे-सच्चे लोगों के दम पर ही दुनिया चलती है,
हम कैसे इस बात को मानें कहने को संसार कहे।